Authored by Dr Harsh Sharma, Edited and Peer Reviewed by Dr. Pooja Sharma
Published June 7, 2019, Last updated June 7, 2019
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टॉन्सिल्स क्या हैं ?
टॉन्सिल्स गले के पीछे में गोलाकार ग्रंथियाँ हैं। उन का काम गले के रास्ते आने वाले वाइरस या बैक्टीरिया को शरीर के अंदर जाने से रोकना है। ये टॉन्सिल्स शरीर की रक्षा प्रणाली का एक बहुत महत्वपूर्ण अंग हैं।
टॉन्सिल्स का शरीर में महत्व और उनका काम
जैसा मैंने अभी बताया, टॉन्सिल्स हमारे शरीर की रक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। इनका काम शरीर को किसी भी इन्फेक्शन से बचाना है। यह उन सूक्ष्म जीवाणुओं को गले के रास्ते अंदर आने से रोकते हैं जो हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये सूक्ष्म जीवाणु हमारे श्वसन तंत्र या रेस्पिरेटरी सिस्टम, पाचन तंत्र या डाइजेस्टिव सिस्टम और दिल या हार्ट को नुकसान कर सकते हैं।
टांसिलाइटिस क्या होता है ?
कई बार अपना काम करते करते, हमारे शरीर को बचाते बचाते ये टॉन्सिल्स खुद ही बीमार हो जाते हैं। उस समय इन में सूजन और लाली आ जाती है। इन में दर्द भी होने लगता है। इस स्थिति को टांसिलाइटिस कहते हैं।
टांसिलाइटिस के लक्षण
टांसिलाइटिस के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं –
- टॉन्सिल्स में सूजन और लाली आ जाती है।
- कुछ भी खाने या पीने से गले में दर्द होता है। यहाँ तक की थूक निगलते समय भी दर्द होता है। यह दर्द कानों तक भी महसूस हो सकता है।
- गले में दर्द और सूजन के साथ साथ ज्वर या बुखार भी हो सकता है।
- यह बड़े लोगों की तुलना में बच्चों में कहीं अधिक मात्रा में देखा जाता है। यह इसलिए होता है क्यूंकि बच्चों की रक्षा प्रणाली या इम्युनिटी अभी पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुई होती है।
- हर बार जब बच्चा किसी संक्रमण या इन्फेक्शन का शिकार होता है तो उसे गले में दर्द, सूजन और ज्वर का सामना करना पड़ता है।
टांसिलाइटिस का उपचार
एलोपैथिक प्रणाली में इस का इलाज प्रारम्भिक रूप से एंटीबायोटिक्स से किया जाता है और बाद में सर्जरी से टॉन्सिल्स को निकाल दिया जाता है। इसे किसी भी हालात में ठीक नहीं माना जा सकता। अकसर यह संक्रमण किसी वायरस की वजह से होता है। ऐसे में एंटीबायोटिक्स देना न तो आवश्यक है न ही फायदेमंद अपितु उस का नुकसान होता है। शरीर में मौजूद बक्टेरिआ एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट हो जाते हैं और उन पर एंटीबायोटिक्स का प्रभाव होना बंद हो जाता है। एंटीबायोटिक्स के अपने भी कुछ दुष्प्रभाव हैं जो शरीर को झेलने पड़ते हैं। इस से मनुष्य की संक्रमण रोधक क्षमता कम होती है।
टांसिलाइटिस के लिए सर्जरी के दुष्परिणाम
बार बार एंटीबायोटिक्स देने के बाद भी जब यह टांसिलाइटिस होता रहता है तो एलोपैथिक डॉक्टर सर्जरी से टॉन्सिल्स को निकालने की सलाह देते हैं। यहां यह बताना बहुत महत्वपूर्ण है की जब आप टॉन्सिल्स को निकाल देते हैं तो आप एक प्रकार से चौकीदार को निकाल रहे हैं। टॉन्सिल्स का काम आप के शरीर की चौकीदारी करना ही तो है। जब आप ने चौकीदार को निकाल दिया तो आप का शरीर असुरक्षित रह जाता है। हर प्रकार का संक्रमण या इन्फेक्शन आप के शरीर में बिना रोक टोक में घुसने लगेगा। यह संक्रमण आप के भीतरी और आवश्यक अंगों तक निःसंकोच पहुंच जाएगा। इन अंगों में आप का दिल हार्ट, आप की श्वसन प्रणाली या रेस्पिरेटरी सिस्टम और आप की प्रणाली या डाइजेस्टिव सिस्टम शामिल हैं। ये संक्रमण गले के संक्रमण से कहीं अधिक खतरनाक होते हैं। इसलिए टॉन्सिल्स को निकालना कोई समझदारी का काम नहीं है। इस से बेहतर है की टांसिलाइटिस को दवाओं से ठीक कर लिया जाए।
टांसिलाइटिस का होम्योपैथिक उपचार
होम्योपैथिक दवाएं टांसिलाइटिस को इतनी अच्छे से ठीक कर देती हैं कि कभी भी सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ती। होम्योपैथी न केवल तुरंत एक्यूट या तीव्र टांसिलाइटिस को ठीक कर सकती हैं अपितु बहुत पुराने टांसिलाइटिस को भी जड़ से खत्म कर देती हैं। ऐसे एक्यूट टांसिलाइटिस के मरीज़ों का ने केवल दर्द ठीक कर देती हैं, साथ ही ये सूजन, लाली और ज्वर या बुखार को भी ठीक कर देती हैं।
होम्योपैथी शरीर की संक्रमण रोधक शक्ति को बढ़ाती है और टॉन्सिल्स को निकालने से बचाती है
होम्योपैथी मानती है कि शरीर की संक्रमण रोधक क्षमता को बढ़ाना चाहिए। इस से शरीर स्वयं ही हर संक्रमण को खत्म कर देता है और टांसिलाइटिस को ठीक कर लेता है। वही टॉन्सिल्स जो कल तक बीमारी का कारण बने हुए थे, वे अब अपना काम ठीक प्रकार से करने लग जाते हैं। अब दर्द, सूजन और लाली नहीं होती। इस प्रकार से मैंने असंख्य बच्चों और लोगों को ठीक किया है।
टांसिलाइटिस के लिए 5 सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवाएं
मैं अपने अनुभव के आधार पर ये 5 सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवाओं के नाम दे रहा हूँ। ये वो दवाएं हैं जो सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाती हैं। इस का यह अर्थ नहीं है कि हर समय इन 5 में से ही एक दवा काम करेगी। यह देखना पड़ता है कि किस प्रकार के लक्षण रोगी में हैं और उन लक्षणों को दवाओं के लक्षणों से मिलाना पड़ता है। लेकिन यहां जो दवाएं मैं बता रहा हूँ वे आम तौर पर प्रयोग में सर्वाधिक लाई जाती हैं।
टांसिलाइटिस के लिए 5 सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवाएं हैं –
आर्सेनिक एल्बम – बेचैनी और प्यास के साथ टांसिलाइटिस के लिए सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा
बेलाडोना – लाली के साथ टांसिलाइटिस के लिए होम्योपैथिक दवा
हीपर सल्फर – मवाद या पस के साथ होम्योपैथिक दवा
मर्क सॉल – अधिक पसीने के साथ टांसिलाइटिस के लिए सर्वोत्तम दवा
बेराइटा कार्ब – ठंड से होने वाले टांसिलाइटिस के साथ सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा
हर रोगी के लिए बिलकुल सही दवा चुन पाना एक कला है। इस के लिए अभ्यास और मेहनत की आवश्यकता होती है। रोगी से उसके लक्षण ध्यान से पूछना और फिर उन्हें दवाओं के लक्षण से मिलाना अनुभव और मेहनत का काम है। यहां मैं उपरोक्त दवाओं के लक्षण संक्षेप में दे रहा हूँ –
आर्सेनिक एल्बम – बेचैनी और प्यास के साथ टांसिलाइटिस के लिए सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा
जब रोगी को बेचैनी हो और प्यास अधिक लगे, तो आर्सेनिक एल्बम ऐसे में सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा मानी जाती है। कुछ भी ठंडा खाने या पीने से होने वाले टांसिलाइटिस के लिए यह बेहतरीन दवा है। इस में कुछ भी गर्म खाने या पीने से अच्छा महसूस होता है। दर्द को आराम मिलता है भले ही वह तात्कालिक हो। टांसिलाइटिस के साथ ज्वर भी हो सकता है।
बेलाडोना – लाली के साथ टांसिलाइटिस के लिए होम्योपैथिक दवा
जब टॉन्सिल्स बहुत लाल हों और साथ में जलन या गर्मी सी महसूस हो, बेलाडोना ऐसे में सर्वाधिक अच्छी होम्योपैथिक दवा है। टॉन्सिल्स सूज कर बड़े और इतने लाल हो जाते हैं मानो बहुत गुस्से में हों। कुछ भी निगलना मुश्किल हो जाता है और आश्चर्यजनक बात यह है कि तरल पदार्थ निगलना और भी मुश्किल लगता है। चेहरा भी लाल हो जाता है और जलने लगता है। मुंह और गला सूखता है पर फिर भी पानी पीने का दिल नहीं करता है। टॉन्सिल्लिटस के साथ तीव्र ज्वर भी होता है।
हीपर सल्फर – मवाद या पस के साथ होम्योपैथिक दवा
जब टॉन्सिल्स में मवाद या पस हो तो टांसिलाइटिस के लिए हीपर सल्फर सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा है। तीखा दर्द महसूस होता है। रोगी थोड़ी भी ठंडी हवा या ठंडा पानी सह नहीं पाता। कुछ भी निगलते समय ऐसा महसूस होता है जैसे कुछ तीखा गले में चुभ रहा हो। यह दर्द गले से कानों तक महसूस हो सकती है। टांसिलाइटिस के साथ साथ ठंड भी महसूस होती है।
मर्क सॉल – अधिक पसीने के साथ टांसिलाइटिस के लिए सर्वोत्तम दवा
जब टांसिलाइटिस के साथ अधिक पसीना आता है तो मर्क सॉल सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा है। टॉन्सिल्स में लाली के साथ साथ नीलापन देखने को मिलता है। लगातार ऐसा मन करता रहता है की गले में कुछ फंसा है जिसे निगलने की ज़रुरत है। ठंड महसूस होती रहती है। मौसम के बदलने से हर बार गले में परेशानी बढ़ जाती है। रात के समय दर्द अधिक होती है। मुंह में थूक की मात्रा अधिक बनी रहती है।
बेराइटा कार्ब – ठंड से होने वाले टांसिलाइटिस के साथ सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा
जब किसी बच्चे को ज़रा सी ठंड लगने पर टांसिलाइटिस हो जाए तो उस के लिए बेराइटा कार्ब सर्वोत्तम होम्योपैथिक दवा है। बच्चा किसी भी प्रकार से ठंड को झेल नहीं पाता है, चाहे वह ठंडा खाना पीना हो या ठंडी हवा। थूक निगलने से गले में दर्द सर्वाधिक होती है। टॉन्सिल में मवाद भी हो सकता है।
Child of 5year having tonsil detected first time with white color on throught on both side, also having fever and pain in knees.
Wife(age 33yrs) is having tonsil with fever and body pain.
Please suggest homeopathy medicine for both